क्या पाकिस्तान भारतीय हवाई हमलों का जवाब देगा? क्या कहते है दुनिया के एक्सपर्ट?

मंगलवार और बुधवार की दरमियानी रात, भारतीय समयानुसार 1:05 से 1:30 बजे तक, सिर्फ़ 25 मिनट। इन 25 मिनटों में भारत ने पाकिस्तान और पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में नौ जगहों ...

पाकिस्तान और भारत के बीच यद्ध

मंगलवार और बुधवार की दरमियानी रात, भारतीय समयानुसार 1:05 से 1:30 बजे तक, सिर्फ़ 25 मिनट। इन 25 मिनटों में भारत ने पाकिस्तान और पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में नौ जगहों पर मिसाइल और हवाई हमले किए। निशाने पर थे आतंकी ठिकाने। लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद, हिज़्बुल मुजाहिदीन।

भारत ने कहा, ये हमला पहलगाम के ज़ख़्म का जवाब था। लेकिन पाकिस्तान ने दावा किया कि छह जगहों पर हमले हुए, 31 लोग मारे गए, और भारत के पाँच लड़ाकू विमान और एक ड्रोन मार गिराए। भारत ने इन दावों को खारिज किया।  तो सवाल ये है: क्या ये सिर्फ़ एक जवाबी कार्रवाई थी, या फिर एक बड़े युद्ध का आग़ाज़? क्या भारत और पाकिस्तान, दो परमाणु शक्ति संपन्न देश, एक बार फिर उस रास्ते पर हैं, जहाँ से वापसी मुश्किल है?

बात शुरू होती है 22 अप्रैल, 2025 से। जम्मू-कश्मीर का पहलगाम। एक पर्यटन स्थल, जहाँ लोग सुकून की तलाश में जाते हैं। लेकिन उस दिन, आतंकियों ने 26 ज़िंदगियाँ छीन लीं। पर्यटक, स्थानीय लोग, बच्चे – कोई नहीं बचा। देश ग़ुस्से में था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कड़ी कार्रवाई की बात कही। और फिर, दो हफ़्ते बाद, आया ‘ऑपरेशन सिंदूर’। भारत ने कहा, विश्वसनीय ख़ुफ़िया जानकारी के आधार पर, सियालकोट, मुज़फ़्फ़राबाद, और यहाँ तक कि बहावलपुर में जैश-ए-मोहम्मद के हेडक्वार्टर को निशाना बनाया गया।  बहावलपुर, जो अंतरराष्ट्रीय सीमा से 100 किलोमीटर अंदर है। ये कोई छोटा ऑपरेशन नहीं था। ये था भारत का साफ़ संदेश: आतंक के ख़िलाफ़ अब कोई नरमी नहीं।

लेकिन रुकिए। ये पहली बार नहीं है। 2016 में उरी हमले के बाद भारत ने सर्जिकल स्ट्राइक की थी। 2019 में पुलवामा में 40 जवानों की शहादत के बाद बालाकोट में हवाई हमला। और अब, 2025 में, पहलगाम के बाद ये ऑपरेशन। इतिहासकार श्रीनाथ राघवन कहते हैं, “इस बार भारत ने हमले का दायरा बढ़ाया। पहले सिर्फ़ नियंत्रण रेखा के पार, पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में हमले होते थे। लेकिन इस बार, पंजाब के मुरीदके और बहावलपुर तक भारत ने दस्तक दी।” यानी, ये सिर्फ़ एक जवाब नहीं था। ये था एक व्यापक संदेश, कि अब भारत तीनों बड़े आतंकी संगठनों – लश्कर, जैश, और हिज़्बुल – को एक साथ निशाना बनाएगा।

लेकिन दूसरी तरफ़, पाकिस्तान की कहानी अलग है। उसने कहा, छह जगहों पर हमले हुए। 31 लोग मारे गए, 46 घायल। और ये दावा भी कि पाँच भारतीय लड़ाकू विमान और एक ड्रोन मार गिराया। भारत ने इन दावों को सिरे से खारिज किया। लेकिन नियंत्रण रेखा पर गोलाबारी में भारत के 15 नागरिकों की मौत की ख़बर ने माहौल को और गर्म कर दिया। तो सवाल ये है: क्या ये तनाव अब एक पूर्ण युद्ध में बदल जाएगा? या फिर, जैसे पहले हुआ, कूटनीति इसे थाम लेगी?

विशेषज्ञों की राय बँटी हुई है। भारत के पूर्व हाई कमिश्नर अजय बिसारिया कहते हैं, “ये ‘बालाकोट प्लस’ था। सटीक, निशाने पर, और पहले से ज़्यादा प्रत्यक्ष।” लेकिन वो ये भी मानते हैं कि पाकिस्तान की जवाबी कार्रवाई तय है। लाहौर के विश्लेषक एजाज़ हुसैन कहते हैं, “पाकिस्तानी सेना का बयान और बदले की बातें देखकर लगता है कि सर्जिकल स्ट्राइक होगी।” और अगर दोनों तरफ़ से सर्जिकल स्ट्राइक शुरू हुई, तो ये एक सीमित युद्ध में बदल सकता है। अमेरिका के क्रिस्टोफ़र क्लैरी की चेतावनी और सख़्त है। वो कहते हैं, “ये 2002 के भारत-पाकिस्तान संकट से भी ज़्यादा ख़तरनाक है।”

लेकिन एक और कोण है। पाकिस्तान के विश्लेषक उमर फ़ारूक कहते हैं, “पाकिस्तान आज 2016 या 2019 जैसा नहीं है। इमरान ख़ान जेल में हैं। जनता का सेना के प्रति भरोसा कम है।” लेकिन वो ये भी कहते हैं कि अगर पंजाब में भारत-विरोधी भावनाएँ भड़कीं, तो सेना पर जवाबी कार्रवाई का दबाव बढ़ेगा। और कुछ मीडिया हाउस ये दावा भी कर रहे हैं कि छह-सात भारतीय जेट मार गिराए गए। स्वतंत्र पुष्टि नहीं हुई, लेकिन ये ख़बरें पाकिस्तानी जनता में सेना की छवि को मज़बूत कर रही हैं।

तो क्या कोई रास्ता है, जिससे ये तनाव कम हो? इतिहास हमें बताता है कि ऐसा मुमकिन है। 2019 में, बालाकोट हमले के बाद, जब पाकिस्तान ने भारतीय पायलट अभिनंदन वर्धमान को पकड़ा, तो कूटनीति ने काम किया। अभिनंदन की रिहाई हुई, और तनाव कम हुआ। लेकिन इस बार, हालात ज़्यादा जटिल हैं। भारत ने सिंधु जल संधि को निलंबित कर दिया। सीमा पर क्रॉसिंग बंद। राजनयिकों को निकाला जा रहा है। पाकिस्तान ने शिमला समझौते को रद्द किया। ये सब 2019 की गूँज है, लेकिन इस बार दाँव ज़्यादा ऊँचा है।

तो क्या भारत और पाकिस्तान इस बार समझदारी दिखाएँगे? विशेषज्ञ कहते हैं, कूटनीति ही एकमात्र रास्ता है। लेकिन जब दोनों तरफ़ की जनता में ग़ुस्सा है, सेनाएँ आमने-सामने हैं, और परमाणु हथियारों की छाया मँडरा रही है, तो सवाल उठता है: क्या हम एक और 2002 देखने जा रहे हैं, या कुछ और बुरा? जवाब कोई नहीं जानता। लेकिन इतना तय है कि अगले कुछ दिन, शायद कुछ हफ़्ते, भारत-पाकिस्तान के रिश्तों के लिए निर्णायक होंगे।

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