हरियाणा का इतिहास: बात करेंगे एक ऐसी ज़मीन की, जिसका नाम सुनते ही खेतों की हरियाली, वीरों की गाथाएँ, और इतिहास की गूँज ज़हन में आती है। हरियाणा। ये सिर्फ़ एक राज्य नहीं, बल्कि एक कहानी है। एक ऐसी कहानी, जो ब्रिटिश शासन के दमन से शुरू होकर आज़ादी की जंग और फिर एक अलग राज्य की माँग तक जाती है। लेकिन सवाल ये है: हरियाणा का ये नाम आया कहाँ से? और क्यों इस ज़मीन को कभी पंजाब के साथ जोड़ा गया, तो कभी दिल्ली के साथ? क्यों इसकी सांस्कृतिक जड़ें इतनी गहरी हैं, फिर भी इसे सालों तक राजनीतिक अलगाव झेलना पड़ा? आइए, इस इतिहास को थोड़ा और करीब से देखते हैं।
बात शुरू होती है 1857 से। आज़ादी का पहला युद्ध। हरियाणा के लोग, जिन्होंने इस जंग में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया, ब्रिटिश शासकों के लिए खतरा बन गए। नतीजा? 1858 में ब्रिटिश सरकार ने हरियाणा को पंजाब के साथ जोड़ दिया। ये कोई प्रशासनिक फ़ैसला नहीं था, बल्कि एक राजनीतिक सजा थी। हरियाणा के लोगों को दिल्ली और पश्चिमी उत्तर प्रदेश से अलग कर, उनकी पहचान को दबाने की कोशिश थी। लेकिन हरियाणा के लोग हारे नहीं। भले ही उनकी राजनीतिक सीमाएँ खो गईं, उन्होंने अपनी सांस्कृतिक जड़ें बनाए रखीं। रोटी और बेटी का रिश्ता, जो दिल्ली और यूपी के लोगों से जोड़ता था, वो आज भी बरकरार था।
लेकिन ब्रिटिश शासन ने हरियाणा को विकास से वंचित रखा। शिक्षा, व्यापार, उद्योग, सिंचाई – हर मोर्चे पर ये क्षेत्र 19वीं सदी में पिछड़ गया। 1911 में, जब ब्रिटिश सरकार ने राजधानी को कलकत्ता से दिल्ली लाने का फ़ैसला किया, हरियाणा को फिर से अलग कर दिया गया। 1920 में, दिल्ली की सीमाओं को बढ़ाने की बात उठी। मुस्लिम लीग ने सुझाव दिया कि आगरा, मेरठ, और अंबाला डिवीजन को दिल्ली में शामिल किया जाए। दिल्ली के आयुक्त सर जे.पी. थॉमसन को भी स्थानीय लोगों ने यही माँग दी। लेकिन क्या ये माँग पूरी हुई? नहीं।
1928 में, दिल्ली में ऑल पार्टी कॉन्फ्रेंस में फिर से दिल्ली की सीमाएँ बढ़ाने की बात उठी। हरियाणा के बड़े नेताओं – पंडित नेकी राम शर्मा, लाला देशबंधु गुप्ता, और श्री राम शर्मा – ने गांधी जी से मुलाक़ात की। उन्होंने गुहार लगाई कि हरियाणा के ज़िलों को दिल्ली के साथ जोड़ा जाए। 1931 में, लंदन में दूसरी गोलमेज़ कॉन्फ्रेंस में पंजाब के वित्तीय आयुक्त सर जेफरी कॉर्बेट ने भी यही बात उठाई। उनका तर्क था कि अंबाला डिवीजन ऐतिहासिक रूप से हिंदुस्तान का हिस्सा था, और इसे पंजाब में शामिल करना ब्रिटिश शासन की ग़लती थी। लेकिन ये सारी माँगें, ये सारे तर्क, ब्रिटिश फ़ाइलों में दबकर रह गए।
हरियाणा के नाम का इतिहास
अब बात हरियाणा के नाम की। हरियाणा कोई नया नाम नहीं। ये ज़मीन प्राचीन काल में ब्रह्मवर्त, आर्यवर्त, और ब्रहमोपदेश के नाम से जानी जाती थी। प्रोफेसर एच.ए. फडके कहते हैं कि हरियाणा ने भारतीय संस्कृति को बनाने में अनूठा योगदान दिया। इसे पृथ्वी पर स्वर्ग कहा गया। बहुधान्याका और हरियंका – ये नाम इसकी उर्वरता और हरियाली की गवाही देते हैं। रोहतक के बोहर गाँव में मिला एक शिलालेख, जो 1337 विक्रम संवत का है, हरियाणा को हरियंक कहता है। सुल्तान मोहम्मद-बिन-तुगलक के ज़माने में भी ‘हरियाणा’ शब्द एक पत्थर पर उकेरा गया था। धरणिधर कहते हैं, हरियाणा का मतलब है हरि की आना। और गिरीश चंदर अवस्थी कहते हैं, ये नाम ऋग्वेद के एक राजा वासुराजा से आया, जिन्होंने इस ज़मीन पर राज किया।
हरियाणा का प्रशासनिक इतिहास
अब बात हरियाणा के प्रशासनिक इतिहास की। 12वीं सदी से पहले हरियाणा को एक अलग भौगोलिक इकाई के रूप में नहीं जाना जाता था। लेकिन इसकी प्राचीनता पर कोई सवाल नहीं। जब गज़नवी ने 1020 में लाहौर पर कब्ज़ा किया, तोमर राजपूत दिल्ली से हरियाणा पर राज कर रहे थे। सुल्तान मसूद ने हांसी पर हमला किया, किला बनाया, और सोनीपत तक बढ़ा। लेकिन तोमरों ने इन ज़मीनों को वापस ले लिया। फिर आए गौरी और चह्वाण। 1192 में, करनाल के तरावड़ी में पृथ्वीराज चौहान और मुहम्मद गौरी की जंग हुई। पृथ्वीराज हारे, और दिल्ली सल्तनत का दौर शुरू हुआ। 1206 में कुतुब-उद-दीन ऐबक दिल्ली के तख़्त पर बैठा। लेकिन हरियाणा के लोग, जो हिंदू धर्म और अपनी संस्कृति से जुड़े थे, उन्होंने विदेशी शासकों के सामने अपनी पहचान बनाए रखी।
तो क्या हरियाणा सिर्फ़ एक भौगोलिक क्षेत्र है? नहीं। ये एक ऐसी ज़मीन है, जिसने ब्रिटिश दमन झेला, अपनी संस्कृति को बचाए रखा, और आख़िरकार 1966 में एक अलग राज्य के रूप में उभरा। लेकिन सवाल ये है: क्या आज का हरियाणा उस प्राचीन ब्रह्मवर्त की विरासत को पूरी तरह संजो पाया है? या फिर, राजनीतिक और प्रशासनिक बदलावों के बीच, उसकी आत्मा कहीं खो गई है? जवाब शायद हरियाणा की उन गलियों में मिलेगा, जहाँ आज भी रोटी और बेटी का रिश्ता ज़िंदा है।