हरियाणा में इस बार बारिश और बाढ़ ने किसानों की कमर तोड़ दी है। खासकर सिरसा जिले में धान की फसल पूरी तरह बर्बाद हो गई है। मगर विडंबना यह है कि प्राकृतिक आपदा के बाद अब किसान बीमा कंपनियों के नियमों की मार झेल रहे हैं। कंपनियों ने धान की फसल का प्रीमियम तो समय पर काट लिया, लेकिन जब नुकसान की भरपाई का वक्त आया तो “जलभराव” का नियम धान की फसल पर लागू न होने का हवाला देकर क्लेम स्वीकार करने से इनकार कर दिया।
सिरसा में 10 हजार एकड़ से ज्यादा धान डूबा
सिरसा जिले में घग्गर नदी के मुख्य तटबंध से लगे इलाकों में करीब 10 हजार एकड़ धान पानी में डूब गया। सिरसा के गांव केलनिया के किसान सुभाष चंद्र की 8 एकड़ फसल पूरी तरह बर्बाद हो गई। उन्होंने बीमा कंपनी को सूचना दी और कंपनी ने 72 घंटे में सर्वेयर भेजने का आश्वासन भी दिया, मगर बाद में सर्वे कराने से मना कर दिया। यही स्थिति सिर्फ सिरसा ही नहीं बल्कि यमुनानगर से लेकर करनाल, कैथल, कुरुक्षेत्र, फतेहाबाद, जींद, अंबाला, पानीपत, रोहतक और सोनीपत समेत 12 जिलों में देखने को मिल रही है।
बीमा और मुआवजा दोनों से वंचित किसान
किसानों की सबसे बड़ी समस्या यह है कि क्षतिपूर्ति पोर्टल भी बीमा धारक किसानों का आवेदन स्वीकार नहीं करता। अगर किसान ने बीमा करवाया है तो उसका आवेदन सीधे रिजेक्ट हो जाता है। नतीजतन किसान न तो बीमा क्लेम ले पा रहे हैं और न ही सरकार से मुआवजा मिल पा रहा है।
भारतीय किसान एकता के प्रदेश अध्यक्ष लखविंद्र सिंह औलख ने बताया कि यह दोहरी मार है। किसानों ने बीमा के लिए प्रीमियम भरा, लेकिन अब न बीमा कंपनियां मदद कर रही हैं और न सरकार। उन्होंने साफ कहा कि अगर प्रभावित किसानों को मुआवजा नहीं दिया गया तो सरकार का जोरदार विरोध किया जाएगा।
किसानों की बैठक और चेतावनी
बुधवार रात सिरसा के कई गांवों के किसानों ने बैठक की और यह तय किया कि इस पूरे मामले को उपायुक्त शांतनु शर्मा के जरिए राज्य सरकार तक पहुँचाया जाएगा। किसानों ने सरकार को चेतावनी दी है कि यदि उन्हें मुआवजा नहीं मिला तो वे आंदोलन करने से पीछे नहीं हटेंगे।
कृषि विभाग भी मानता है नियमों में खामी
कृषि विभाग के अधिकारियों ने भी माना है कि यदि धान की पूरी फसल जलभराव से नष्ट हो जाती है, तो इसे लोकलाइज्ड क्लेम की श्रेणी में लाना चाहिए। यानी नियमों में बदलाव की सख्त ज़रूरत है। लेकिन अभी तक बीमा कंपनियां नियमों का हवाला देकर बच रही हैं।
बीमा कंपनी का पक्ष
भारतीय कृषि बीमा कंपनी के जिला समन्वयक विकास का कहना है कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) के नियमों में जलभराव से धान की फसल को नुकसान होने पर क्लेम देने का प्रावधान नहीं है। नियम सिर्फ ओलावृष्टि, बादल फटना, बिजली गिरना जैसी प्राकृतिक आपदाओं तक ही सीमित हैं।
धान की खेती का दायरा
हरियाणा में लगभग 12 जिलों में धान की खेती होती है।
सिरसा : 1 लाख 56 हजार हेक्टेयर
यमुनानगर : 80 हजार हेक्टेयर
कैथल, कुरुक्षेत्र, करनाल, फतेहाबाद, हिसार, जींद, अंबाला, पानीपत, रोहतक, सोनीपत – लाखों एकड़ क्षेत्र में धान की खेती हुई थी, जो इस बार भारी बारिश और बाढ़ से प्रभावित हुई है।
किसानों का दर्द
किसान गुरविंद्र सिंह का कहना है कि बीमा योजना किसानों की सुरक्षा के लिए है, लेकिन जब असली वक्त आता है तो कंपनियां पल्ला झाड़ लेती हैं। उन्होंने कहा कि “हमने बीमा करवाया, लेकिन अब हमें न तो बीमा से राहत मिल रही है और न ही सरकार से। आखिर किसान जाए तो कहाँ जाए?”
हरियाणा के किसान इस वक्त दोहरी मार झेल रहे हैं—एक तरफ प्रकृति की मार और दूसरी तरफ बीमा कंपनियों के कठोर नियम। ऐसे में सवाल उठता है कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना किसानों के लिए वास्तविक सुरक्षा कवच है या सिर्फ कागजों में दर्ज एक योजना? अगर सरकार ने समय रहते हस्तक्षेप नहीं किया तो सिरसा समेत पूरे प्रदेश के धान उत्पादक किसान आंदोलन की राह पकड़ सकते हैं।