चंडीगढ़: बहुचर्चित मानेसर भूमि घोटाले मामले में हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा को पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट से अंतरिम राहत मिली है। हाई कोर्ट ने हुड्डा द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई पूरी करने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। इसके साथ ही, पंचकूला की विशेष सीबीआई अदालत में हुड्डा और अन्य आरोपियों के खिलाफ आरोप तय करने की प्रक्रिया पर फिलहाल रोक लग गई है।
क्या था हुड्डा का तर्क?
हुड्डा ने हाई कोर्ट में पंचकूला सीबीआई अदालत के 19 सितंबर के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उनकी कार्यवाही स्थगित करने की याचिका खारिज कर दी गई थी।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला: हुड्डा के वकीलों ने तर्क दिया कि जब सुप्रीम कोर्ट ने इसी मामले में कुछ सह-आरोपियों के खिलाफ कार्यवाही पर रोक लगा रखी है, तो अन्य आरोपियों के खिलाफ आरोप तय करना “मुकदमे को अलग-अलग हिस्सों में बांटने” जैसा होगा, जो कानूनन गलत है।
निचली अदालत का फैसला अवैध: उन्होंने दलील दी कि निचली अदालत ने उनकी अर्जी सिर्फ इस आधार पर खारिज कर दी थी कि सुप्रीम कोर्ट ने केवल उन्हीं आरोपियों की कार्यवाही पर रोक लगाई है जिन्होंने विशेष अनुमति याचिकाएं दायर की थीं।
क्या है मानेसर भूमि घोटाला?
यह मामला कांग्रेस सरकार के कार्यकाल का है, जिसमें सरकारी अधिकारियों और निजी बिल्डरों की मिलीभगत से सैकड़ों एकड़ जमीन के अधिग्रहण में घोटाले का आरोप है।
किसानों से सस्ती जमीन: सीबीआई के अनुसार, 2004 से 2007 के बीच गुरुग्राम के मानेसर, नौरंगपुर और लखनौला गांवों के किसानों को अधिग्रहण का डर दिखाकर उनकी करीब 400 एकड़ जमीन सस्ते दामों पर खरीदी गई।
बिल्डरों को फायदा: बाद में इसी जमीन के लाइसेंस रियल एस्टेट कंपनियों, बिल्डरों और कॉलोनाइजरों को भारी रियायतों पर जारी कर दिए गए, जिससे जमीन मालिकों को लगभग ₹1,500 करोड़ का नुकसान हुआ, जबकि आरोपियों को अनुचित लाभ मिला।
80,000 पन्नों की चार्जशीट: सीबीआई ने सितंबर 2015 में जांच शुरू की थी और 2018 में भूपेंद्र हुड्डा समेत 34 लोगों के खिलाफ 80,000 पन्नों की चार्जशीट दाखिल की थी। आरोपियों में हुड्डा के अलावा कई वरिष्ठ पूर्व आईएएस अधिकारी और बिल्डर भी शामिल हैं।
इस मामले में पिछले चार साल से कार्यवाही रुकी हुई थी, लेकिन अब हाई कोर्ट के फैसले के बाद ही यह तय होगा कि हुड्डा और अन्य 33 आरोपियों के खिलाफ मुकदमा आगे बढ़ेगा या नहीं।











