6 अक्टूबर 1930 को अविभाजित भारत के पंजाब राज्य के बहावलपुर में जन्मे चौधरी भजनलाल का जीवन संघर्ष, रणनीति और सत्ता की गहरी समझ का प्रतीक है। बंटवारे के बाद उनका परिवार हरियाणा के हिसार जिले के आदमपुर में आकर बसा, जहां से उन्होंने राजनीति की सीढ़ियों की चढ़ाई शुरू की।
कारोबार से राजनीति की ओर: शुरुआती संघर्ष
1950 के दशक में भजनलाल ने कपड़े का व्यापार शुरू किया, लेकिन मुनाफा खास नहीं हुआ। उन्होंने अनाज मंडी में कमीशन एजेंट के रूप में भी काम किया और 1965 के बाद घी का कारोबार शुरू किया, जो पंजाब में खासी लोकप्रियता हासिल कर गया। इस दौरान, उन्हें एहसास हुआ कि कारोबार को सुरक्षित और सफल बनाने के लिए सत्ता की ताकत जरूरी है। यही सोच उन्हें राजनीति की ओर खींच लाई।

पंच से विधायक तक का सफर
1960 में भजनलाल आदमपुर ग्राम पंचायत के पंच बने। इसके एक साल बाद ही वे ब्लॉक समिति के चेयरमैन चुने गए। इस पद ने उन्हें क्षेत्र में पहचान दिलाई और राजनीतिक जमीन तैयार की। 1967 में उन्होंने कांग्रेस से टिकट मांगा और 1968 में आदमपुर से पहली बार विधायक बने।
MLA हॉस्टल के बाहर बंदूकधारी भजनलाल
भजनलाल के राजनीतिक कौशल की झलक 1970 के दशक में दिखाई दी, जब उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री बंसीलाल के विश्वासपात्र के रूप में कृषि मंत्री का पद संभाला। 1972 में जब दल-बदल का दौर चला, तब भजनलाल खुद MLA हॉस्टल के बाहर कंधे पर दुनाली बंदूक टांगकर पहरा देते दिखे थे ताकि कोई विधायक खरीद-फरोख्त न कर सके।
देवीलाल का तख्तापलट और पहली बार मुख्यमंत्री बने
1979 में हरियाणा की राजनीति में भूचाल आया। तत्कालीन मुख्यमंत्री देवीलाल के खिलाफ पार्टी में ही बगावत शुरू हो गई। भजनलाल ने रणनीतिक तरीके से 42 विधायक एकजुट कर लिए और देवीलाल को बहुमत साबित करने से पहले ही इस्तीफा देने पर मजबूर कर दिया। 29 जून 1979 को भजनलाल ने पहली बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली।
जनता पार्टी से कांग्रेस में ‘सरकार’ के साथ शामिल हुए
1980 में इंदिरा गांधी के दोबारा प्रधानमंत्री बनने के बाद भजनलाल ने एक अनोखा दांव चला। 22 जनवरी को वे पूरी कैबिनेट के साथ कांग्रेस में शामिल हो गए। इस तरह देश के पहले ऐसे मुख्यमंत्री बने जिन्होंने पूरी सरकार सहित दल-बदल कर लिया।
दूसरी बार मुख्यमंत्री और देवीलाल से टकराव
1982 के विधानसभा चुनाव में किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला। लेकिन भजनलाल ने निर्दलीयों और विरोधी विधायकों को साधकर 24 जून 1982 को बहुमत साबित कर दूसरी बार मुख्यमंत्री बन गए। देवीलाल इस घटनाक्रम से इतने नाराज हुए कि उन्होंने तत्कालीन राज्यपाल तपासे को थप्पड़ मार दिया, जिसकी देशभर में निंदा हुई।
तीसरी बार मुख्यमंत्री, केंद्र में मंत्री रहे
1987 में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा, लेकिन 1991 में एक बार फिर भजनलाल ने मौके का फायदा उठाया। वे केंद्र में कृषि मंत्री थे लेकिन हरियाणा की राजनीति में फिर उतरते हुए आदमपुर से चुनाव लड़ा और तीसरी बार मुख्यमंत्री बन गए।
2005 में चौथी बार सीएम बनते-बनते रह गए
2005 के चुनाव में कांग्रेस को बड़ी जीत मिली लेकिन पार्टी ने मुख्यमंत्री पद के लिए भूपेंद्र सिंह हुड्डा को चुना। भजनलाल और उनके समर्थक इस फैसले से असंतुष्ट थे। बाद में उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी और 2007 में बेटे कुलदीप बिश्नोई के साथ मिलकर हरियाणा जनहित कांग्रेस (हजकां) का गठन किया।
विवाद और राजनीतिक चालें: भजनलाल की पहचान
भजनलाल को हरियाणा की राजनीति का ‘चाणक्य’ कहा जाता था। उन्होंने कभी भी दल-बदल को अपराध नहीं, बल्कि रणनीति माना। उनकी छवि एक ऐसे नेता की रही जो किसी भी राजनीतिक स्थिति को अपने पक्ष में मोड़ सकता था। उन्होंने बगावत, गठबंधन और तोड़फोड़ की राजनीति को जिस स्तर पर साधा, वह दुर्लभ है।
निधन और विरासत
3 जून 2011 को भजनलाल का निधन हो गया। उस समय वे एक सक्रिय राजनीतिज्ञ और हजकां के संरक्षक थे। उनकी राजनीतिक विरासत को उनके बेटे कुलदीप बिश्नोई ने आगे बढ़ाया, हालांकि वह असर नहीं दिखा पाए जो भजनलाल के समय में था।
भजनलाल की राजनीति से जुड़े प्रमुख तथ्य
वर्ष | घटना |
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1960 | आदमपुर के पंच बने |
1968 | पहली बार विधायक चुने गए |
1970 | कृषि मंत्री बने |
1979 | पहली बार मुख्यमंत्री बने |
1980 | पूरी कैबिनेट सहित कांग्रेस में शामिल |
1982 | दूसरी बार मुख्यमंत्री बने |
1991 | तीसरी बार मुख्यमंत्री बने |
2007 | हरियाणा जनहित कांग्रेस का गठन |
2011 | निधन |
चौधरी भजनलाल का राजनीतिक सफर सत्ता की राजनीति का अनूठा उदाहरण है। उन्होंने दिखा दिया कि राजनीति केवल विचारधारा नहीं, बल्कि परिस्थितियों को समझने और मोड़ने की कला भी है। आज, उनकी 14वीं पुण्यतिथि पर उन्हें याद करते हुए यही कहा जा सकता है कि वे हरियाणा की राजनीति के सबसे चतुर और प्रभावशाली नेताओं में से एक थे।