चंडीगढ़। हरियाणा सरकार की सामाजिक-आर्थिक आधार पर दी गई बोनस अंक नीति अब 10 हजार से ज्यादा सरकारी कर्मचारियों की नौकरी पर संकट बन गई है। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने 2019 के बाद इस नीति के आधार पर हुई सभी भर्तियों को रद्द करने का आदेश दिया है और नए सिरे से मेरिट लिस्ट तैयार करने को कहा है।
हालांकि कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि कर्मचारियों की कोई गलती नहीं है, दोष सरकार की नीति में था। कोर्ट ने कर्मचारियों को राहत देते हुए कहा कि जिन्हें नई मेरिट लिस्ट में जगह नहीं मिलेगी, उन्हें कॉन्ट्रैक्ट पर रखा जाए और भविष्य में रिक्त पदों पर प्राथमिकता के आधार पर नियमित किया जाए।
हाईकोर्ट के फैसले की 5 बड़ी बातें
1. नो-फॉल्ट थ्योरी लागू
कोर्ट ने माना कि कर्मचारी निर्दोष हैं। उन्हें गलत नीति के तहत चुना गया, इसलिए उन्हें दोष नहीं दिया जा सकता।
2. चयन प्रक्रिया हुई दूषित
बोनस अंक देने से मेधा आधारित चयन प्रक्रिया प्रभावित हुई। बिना किसी वैज्ञानिक आंकड़े के सामाजिक-आर्थिक आधार पर अंक दिए गए, जिससे संविधान की समानता की भावना को ठेस पहुंची।
3. सरकारी नियम ही गलत
कोर्ट ने माना कि जब EWS आरक्षण पहले से मौजूद है, तो अलग से 5 बोनस अंक देना आरक्षण की सीमा का उल्लंघन है। यह नीति संविधान के प्रावधानों के विपरीत है।
4. सरकार का तर्क खारिज
राज्य सरकार ने इसे जनकल्याणकारी नीति बताया, लेकिन कोर्ट ने कहा कि यदि नीति योग्यता के सिद्धांत को नुकसान पहुंचाए, तो वह असंवैधानिक मानी जाएगी।
5. 10 हजार कर्मचारी प्रभावित
इस फैसले से 10 हजार से ज्यादा नियुक्त कर्मचारी प्रभावित होंगे। वे फिर से मेरिट लिस्ट में अपनी स्थिति के अनुसार नौकरी के योग्य माने जाएंगे।
क्या थी सरकार की विवादित नीति?
2021 में लागू नीति के तहत:
जिन परिवारों की वार्षिक आय 1.80 लाख से कम थी
जिनके परिवार में कोई भी सदस्य सरकारी नौकरी में नहीं था
उन्हें भर्ती प्रक्रिया में 5 बोनस अंक दिए गए।
इस नीति के जरिए कई युवाओं को नौकरी मिली, लेकिन अब कोर्ट ने इसे गैर-संवैधानिक करार दिया।
आगे क्या होगा?
सरकार को अब नई मेरिट लिस्ट बनानी होगी।
जिन कर्मचारियों का चयन नई सूची में नहीं होगा, उन्हें कॉन्ट्रैक्ट पर नियुक्त करने की सिफारिश की गई है।
आगे चलकर यदि रेगुलर पद खाली होते हैं, तो उन्हें वहीं समायोजित किया जाएगा।
हाईकोर्ट का यह फैसला न केवल सरकार की नीति बनाने की प्रक्रिया पर सवाल उठाता है, बल्कि हजारों कर्मचारियों के भविष्य पर भी बड़ा प्रभाव डालने जा रहा है। अब सबकी नजर इस बात पर है कि राज्य सरकार इस फैसले पर कैसे अमल करती है और कर्मचारियों के हितों की रक्षा कैसे करती है।