अनिल विज: हरियाणा के बिजली विभाग में ऑनलाइन तबादला नीति (OTP) के तहत हुए हालिया स्थानांतरणों ने एक दिलचस्प सियासी और प्रशासनिक बहस छेड़ दी है। एक ओर जहां इस नीति से तबादला प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने का दावा किया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर प्रदेश के ऊर्जा मंत्री अनिल विज के अपने ही गृह क्षेत्र अंबाला कैंट में कोई भी अधिकारी पोस्टिंग लेने को तैयार नहीं है।
ऑनलाइन तबादलों के बाद भी पद खाली
बिजली विभाग ने हाल ही में ऑनलाइन तबादला नीति के तहत पहली बार एसई, एक्सईएन और एसडीओ स्तर के 100 अधिकारियों के तबादले किए। इस प्रक्रिया में अधिकारियों से उनकी पसंद के स्टेशन मांगे गए थे। अधिकांश अधिकारियों ने अपनी पसंद के स्थानों पर पदभार ग्रहण कर लिया, लेकिन अंबाला कैंट में एक एक्सईएन और तीन एसडीओ के पद खाली रह गए, क्योंकि किसी भी अधिकारी ने इस क्षेत्र को अपनी पसंद के तौर पर नहीं भरा।
क्यों कतरा रहे हैं अधिकारी?
राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारों में यह चर्चा जोरों पर है कि अधिकारी ऊर्जा मंत्री अनिल विज के सीधे और सख्त कार्यशैली के कारण अंबाला कैंट में पोस्टिंग से बच रहे हैं। माना जा रहा है कि मंत्री द्वारा सीधे तौर पर अफसरों से जवाब-तलब करने और काम में कोताही पर सख्ती बरतने की कार्यप्रणाली के चलते अधिकारी इस “हॉट सीट” पर आने से कतरा रहे हैं।
बिजली निगमों में कर्मचारियों की भारी कमी
यह स्थिति तब और भी गंभीर हो जाती है जब हम प्रदेश के बिजली निगमों में कर्मचारियों की भारी कमी को देखते हैं।
उत्तर हरियाणा बिजली वितरण निगम (UHBVN) और दक्षिण हरियाणा बिजली वितरण निगम (DHBVN) में कुल 40,294 पद स्वीकृत हैं, जिनमें से 18,769 पद खाली पड़े हैं।
UHBVN में 17,956 स्वीकृत पदों में से केवल 10,564 कर्मचारी कार्यरत हैं।
DHBVN में 22,338 स्वीकृत पदों पर लगभग 11,000 कर्मचारी ही तैनात हैं।
कर्मचारियों की इस कमी के कारण मौजूदा स्टाफ पर काम का बोझ बढ़ रहा है। सरकार इस कमी को पूरा करने के लिए हारट्रोन और हरियाणा कौशल रोजगार निगम (HKRN) के माध्यम से 10,948 अस्थायी कर्मचारियों की सेवाएं ले रही है।
आगे की कार्रवाई
अंबाला कैंट में खाली हुए महत्वपूर्ण पदों को भरने के लिए फिलहाल दूसरे अधिकारियों को अतिरिक्त कार्यभार सौंपा जाएगा। यह पहली बार था जब इतने वरिष्ठ स्तर के अधिकारियों को ऑनलाइन तबादला नीति के दायरे में लाया गया था, जिसका उद्देश्य पारदर्शिता बढ़ाना और अधिकारियों को उनकी पसंद की जगह देना था। लेकिन ऊर्जा मंत्री के ही क्षेत्र का खाली रह जाना इस नीति के सामने एक नई चुनौती पेश कर रहा है।












