हरियाणा के एक ऐसे महाठग की कहानी जिसने ख़ुद जज बनकर अपनी रिहाई का फैसला सुनाया

हरियाणा के क़िस्से: दुनिया में चार्ल्स शोभराज जैसे ठगों के किस्से मशहूर हैं, लेकिन भारत में भी एक ऐसा शख्स हुआ जिसने सिस्टम को ऐसे चकमा दिया कि लोग उसे ...

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वैशाली वर्मा

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हरियाणा

हरियाणा के क़िस्से: दुनिया में चार्ल्स शोभराज जैसे ठगों के किस्से मशहूर हैं, लेकिन भारत में भी एक ऐसा शख्स हुआ जिसने सिस्टम को ऐसे चकमा दिया कि लोग उसे “इंडियन चार्ल्स शोभराज” और “सुपर नटवरलाल” कहने लगे। इस शख्स के पास बीएससी और एलएलबी की डिग्रियाँ थीं, यानी पढ़ा-लिखा आदमी था, लेकिन जब सरकारी नौकरी नहीं मिली तो उसने ठगी और अपराध को अपना रास्ता बना लिया। यही फैसला उसकी जिंदगी का टर्निंग प्वाइंट बन गया और वह अगली पच्चास से अधिक सालों तक पुलिस को चकमा देता रहा।

धनीराम मित्तल हरियाणा का रहने वाला था। उसने रोहतक से बीएससी और राजस्थान से एलएलबी की पढ़ाई की, लेकिन पढ़ाई होने के बावजूद नौकरी हाथ नहीं आई। 1964 में उसने छोटे-मोटे फर्जी कामों से शुरुआत की और धीरे-धीरे गाड़ियों की चोरी, जालसाजी और ठगी में हाथ आजमाया। उसके खिलाफ दर्ज मुकदमों की संख्या 150 से ज्यादा थी, वह करीब 90 बार जेल गया और कहा जाता है कि उसने 1000 से ज्यादा गाड़ियाँ चुराईं। दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और चंडीगढ़ में उसके किस्से मशहूर हो गए।

गाड़ियों की चोरी उसका सबसे बड़ा धंधा था। उस जमाने में सुरक्षा प्रणालियाँ कमजोर थीं इसलिए पुरानी गाड़ियों को वह टार्गेट करता। कभी डुप्लिकेट चाबी से गाड़ी निकाल देता, कभी ताला तोड़कर और कभी मौके पर ही नंबर प्लेट और रंग बदलवा देता। फिर फर्जी कागजात बनाकर गाड़ी को किसी स्क्रैप डीलर या भोले खरीदार को बेच देता। उसका नेटवर्क इतना फैला हुआ था कि चोरी की गाड़ियाँ अलग-अलग राज्यों में मिल जाती थीं और पुलिस अक्सर बस पर्चे ही काटती रह जाती थी।

1968 से 1974 के बीच उसने रेलवे में घुसपैठ कर ली और छह साल तक खुद को फर्जी रेलवे स्टेशन मास्टर बताकर काम किया। वह ट्रेनों का हिसाब रखता, टिकट और माल के दावों में छेड़छाड़ करता और पीछे से रेलवे के पैसे और सामान हड़प लेता। उसके पास नकली दस्तावेज और फर्जी सिग्नेचर होते थे इसलिए लोग उसे असली समझ लेते। 1974 में पकड़ा गया लेकिन तब तक रेलवे को लाखों का नुकसान हो चुका था।

सबसे हैरान करने वाला किस्सा 1980 का है जब उसने झज्जर कोर्ट में फर्जी जज बनकर करीब 40 दिन बैठकर फैसले सुनाए। उसने हाईकोर्ट रजिस्ट्रार के नाम से दो फर्जी लेटर बनवाए, एक में असली जज को छुट्टी पर बताया और दूसरे में खुद को उनकी जगह कार्यभार संभालने वाला बता दिया। कोर्ट में गाउन पहनकर उसने फैसले सुनाने शुरू कर दिए और कहा जाता है कि उसने 2000 से ज्यादा कैदियों को जमानत पर रिहा कराया। उसने अपनी ही रिहाई का फैसला भी सुनाया। इतनी जल्दी जमानतें मिलने पर वकील और पुलिस शक में पड़ गए, मामला फैल गया और धनीराम गिरफ्तारी से पहले ही कोर्ट छोड़कर फरार हो गया।

उसने कई बार काले कपड़ों में वकील का भेष बदला, कभी पुलिस की वर्दी पहनी और कई बार कोर्ट की पार्किंग से गाड़ियाँ उठा लेता। एक किस्से के अनुसार उसने कोर्ट के बाहर खड़ी एक जज की गाड़ी ही चुरा ली और बेच दी। लेकिन आख़िरकार उसकी किस्मत ने साथ छोड़ दिया। 2016 में वह आखिरी बार पकड़ा गया जब 77 साल की उम्र में दिल्ली के रानी बाग से मारुति गाड़ी चोरी करके बेचने की कोशिश कर रहा था। 2024 में दिल का दौरा पड़ने से उसकी मौत हो गई और उसकी कहानी यहीं खत्म हुई।

धनीराम की कहानी मनोरंजक भी है और चिंतनीय भी क्योंकि यह बताती है कि कैसे सिस्टम की खामियों का फायदा उठाकर एक इंसान इतनी बड़ी चालें चला सकता है। फर्जी कागज़ों, कमजोर सत्यापन और गैरजिम्मेदार प्रोसीजर्स ने उसे मौका दिया। अगर उसकी तालीम और दिमाग सही दिशा में लगता तो शायद वह बड़ा वकील, जज या अफसर बन सकता था, लेकिन उसने शॉर्टकट चुना और “महाठग” बनकर इतिहास में दर्ज हो गया। यह कहानी हमें याद दिलाती है कि सिस्टम को मजबूत करना और सत्यापन सख्त करना कितना जरूरी है ताकि कोई और धनीराम पैदा न हो।

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