हरियाणा में रबी की बुवाई से ठीक पहले डी-अमोनियम फॉस्फेट (DAP) खाद की भारी किल्लत ने किसानों को संकट में डाल दिया है। हांसी, पलवल, फरीदाबाद समेत कई जिलों में किसान खाद के लिए सुबह 4 बजे से ही किसान सेवा केंद्रों और सोसाइटियों के बाहर लंबी कतारों में लगने को मजबूर हैं। कई जगहों पर भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पुलिस बुलानी पड़ रही है और किसानों के हाथों पर मुहर लगाकर खाद के टोकन दिए जा रहे हैं, जिसे लेकर किसानों में भारी रोष है।
विपक्ष ने सरकार पर साधा निशाना
इस मुद्दे पर विपक्ष ने सरकार को घेर लिया है। इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) के प्रधान महासचिव अभय सिंह चौटाला ने आरोप लगाया है कि सरकार किसानों के साथ अपराधियों जैसा व्यवहार कर रही है।
चौटाला का आरोप: उन्होंने कहा कि एक तरफ सरकार ने जलभराव से बर्बाद हुई फसलों का मुआवजा अभी तक नहीं दिया है, और दूसरी तरफ डीएपी की कमी के कारण किसान अगली फसल की बुवाई भी नहीं कर पा रहा है। उन्होंने कहा कि एक आधार कार्ड पर सिर्फ दो कट्टे डीएपी दिए जा रहे हैं, जो ऊंट के मुंह में जीरे के समान है।
कांग्रेस का हमला: प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष राव नरेंद्र सिंह ने भी इसे सरकार की पूर्ण विफलता बताया है। उन्होंने कहा कि खाद की कमी भाजपा सरकार की गलत नीतियों का नतीजा है और सरकार किसानों को खाद उपलब्ध कराने की बजाय तमाशबीन बनी हुई है।
किसानों की पीड़ा: “दिवाली छोड़ लाइनों में लगे हैं”
किसानों का कहना है कि पहले यूरिया और अब डीएपी की किल्लत ने उनकी कमर तोड़ दी है। दिवाली का त्योहार छोड़कर वे खाद के लिए लाइनों में खड़े हैं।
कालाबाजारी का आरोप: पलवल में किसानों ने अधिकारियों पर निजी दुकानदारों के साथ मिलकर खाद की कालाबाजारी करने का भी आरोप लगाया है। उनका कहना है कि 1355 रुपये में मिलने वाला डीएपी का कट्टा निजी दुकानों पर महंगे दामों में बेचा जा रहा है।
अपर्याप्त आपूर्ति: फरीदाबाद में किसानों का कहना है कि सरकारी केंद्रों पर या तो ताले लटके रहते हैं या कुछ ही घंटों में खाद खत्म हो जाती है।
क्या कहता है कृषि विभाग?
इन आरोपों के बीच कृषि विभाग के उप निदेशक (DDA) सुखदेव सिंह का कहना है कि डीएपी का रैक निरंतर आ रहा है और जो भी खाद आ रही है, उसे किसानों में बांटा जा रहा है। वहीं, कृषि मंत्री श्याम सिंह राणा ने भी राज्य में उर्वरकों की कमी से इनकार किया है और समय पर आपूर्ति का आश्वासन दिया है।
हालांकि, जमीनी हकीकत सरकारी दावों से बिल्कुल अलग नजर आ रही है। यदि किसानों को समय पर डीएपी नहीं मिली, तो गेहूं और सरसों की बुवाई पिछड़ जाएगी, जिससे राज्य के कृषि उत्पादन पर गंभीर असर पड़ सकता है।













