हरियाणा में पशुओं में लम्पी स्किन डिजीज (LSD) के बढ़ते मामलों को देखते हुए हिसार स्थित लाला लाजपत राय पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय (LUVAS) ने पशुपालकों के लिए एक विस्तृत एडवाइजरी जारी की है। विश्वविद्यालय के विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि गर्म और नम मौसम में यह बीमारी तेजी से फैल सकती है और पशुपालकों को सतर्कता बरतने की आवश्यकता है।
वायरस जनित संक्रामक बीमारी, मनुष्यों के लिए सीधा खतरा नहीं
लुवास के पशु चिकित्सा जन स्वास्थ्य एवं महामारी विज्ञान विभाग के अध्यक्ष डॉ. राजेश खुराना ने बताया कि यह एक वायरल बीमारी है, जो पॉक्स वायरस के कारण फैलती है। विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन (WOAH) ने इसे ‘नोटिफायेबल ट्रांसबाउंडरी डिजीज’ की श्रेणी में रखा है। यह रोग संक्रमित पशु के सीधे संपर्क या मच्छर, मक्खी, चीचड़ जैसे कीटों के माध्यम से फैलता है। हालांकि, एक राहत की बात यह है कि यह बीमारी जूनोटिक नहीं है, यानी यह मनुष्यों में नहीं फैलती।
लक्षण और प्रभाव
पशु चिकित्सा रोग निदान विभाग के अध्यक्ष डॉ. ज्ञान सिंह ने बताया कि इस बीमारी के प्रमुख लक्षणों में शामिल हैं:
तेज बुखार
शरीर पर विभिन्न आकार की गांठें या फोड़े (नोड्यूल्स)
आंख व नाक से पानी बहना
भूख कम लगना
पैरों में दर्द व सूजन
दूध उत्पादन में भारी गिरावट
गर्भपात और थनों में सूजन
उन्होंने बताया कि इस बीमारी से प्रभावित होने वाले पशुओं की संख्या (रुग्णता दर) 10-20 प्रतिशत तक देखी जा रही है, जबकि मृत्यु दर 1 से 5 प्रतिशत तक हो सकती है। सबसे बड़ा आर्थिक नुकसान दुधारू पशुओं के दूध उत्पादन में भारी कमी के रूप में होता है।
रोकथाम और उपचार के उपाय
लुवास के विशेषज्ञों ने पशुपालकों के लिए निम्नलिखित सलाह जारी की है:
तत्काल टीकाकरण: स्वस्थ पशुओं का तुरंत टीकाकरण करवाएं। यह सबसे प्रभावी बचाव है।
लक्षण वाले पशुओं का टीकाकरण न करें: जिन पशुओं में बीमारी के लक्षण दिखाई दे रहे हों, उन्हें टीका न लगवाएं।
पशु चिकित्सक से ही इलाज कराएं: बीमार पशु का उपचार केवल नजदीकी पशु चिकित्सालय या चिकित्सक की सलाह से शुरू करें। घावों एवं जटिल लक्षणों का इलाज विशेषज्ञ की देखरेख में ही होना चाहिए।
संक्रमित पशुओं को अलग रखें: बीमार पशुओं को स्वस्थ पशुओं से अलग रखें। रोग ठीक होने तक उन्हें पशु मेलों या दूसरे इलाकों में ले जाने से सख्त परहेज करें।
कीट नियंत्रण: मच्छर-मक्खियों आदि कीटों पर नियंत्रण के उपाय करें, क्योंकि ये बीमारी फैलाने का मुख्य माध्यम हैं।
विश्वविद्यालय की सक्रिय भूमिका
विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. विनोद कुमार वर्मा के निर्देशन में विशेषज्ञों की टीमें प्रभावित क्षेत्रों में सक्रिय हैं और पशुओं की जांच व उपचार सुनिश्चित कर रही हैं। पशुपालक अधिक जानकारी या सहायता के लिए लुवास विश्वविद्यालय, हिसार से संपर्क कर सकते हैं।
लम्पी स्किन डिजीज का प्रकोप पशुपालकों के लिए एक गंभीर चुनौती है, जिससे उन्हें भारी आर्थिक नुकसान हो सकता है। समय रहते सावधानी, टीकाकरण और उचित पशु चिकित्सा देखभाल से इस बीमारी पर नियंत्रण पाया जा सकता है। पशुपालकों को विश्वविद्यालय द्वारा जारी दिशा-निर्देशों का पालन करना चाहिए और किसी भी संदेह की स्थिति में तुरंत पशु चिकित्सक से सलाह लेनी चाहिए।











