हरियाणा में अखिल भारतीय बिश्नोई महासभा में एक बार फिर प्रधान पद को लेकर जंग छिड़ गई है। हिसार जेल से बाहर आते ही देवेंद्र बूड़िया ने दावा किया— “महासभा का प्रधान मैं ही हूं”, जबकि पूर्व सांसद कुलदीप बिश्नोई के समर्थकों ने रजिस्ट्रार सोसाइटी के नाम से पत्र जारी कर परसराम को प्रधान घोषित किया। बूड़िया गुट ने इस पत्र को फर्जी बताया और खुद को असली प्रधान कहा।
जानिए बिश्नोई महासभा के विवाद के मुख्य कारण
- देवेंद्र बूड़िया बोले— मेरे साथ बुरा बर्ताव: सोशल मीडिया पर लाइव आकर बूड़िया ने कहा, “रणधीर पनिहार (कुलदीप के करीबी विधायक) दो दिन से दिल्ली बुला रहे थे। मैं गया तो मेरे साथ ट्रैजेडी की और बुरा व्यवहार किया।” 
- जोधपुर बैठक में आरोप: बूड़िया ने समाजिक बैठक में कहा कि कुलदीप और रणधीर पनिहार ने उनका अपमान किया, जिसके बाद बिश्नोई समाज में नाराजगी बढ़ी और मुकाम धाम में बड़ी बैठक का फैसला लिया गया। 
- संरक्षक पद छिना और सिस्टम बदला: बिश्नोई समाज की मीटिंग में कुलदीप को संरक्षक पद से हटाया गया और तय किया गया की अब महासभा में प्रधान का चुनाव लोकतांत्रिक तरीके से होगा, चुनाव तक प्रभारी प्रधान बूड़िया रहेंगे। वहीं कुलदीप गुट ने परसराम को प्रधान घोषित कर नया विवाद पैदा कर दिया। 
विवाद की पृष्ठभूमि
यह विवाद आदमपुर विधानसभा चुनाव में भव्य बिश्नोई की हार के बाद और तेज़ हुआ। उसके बाद बूड़िया ने लाइव में कुलदीप बिश्नोई के करीबी विधायक रणधीर पनिहार पर हरियाणा निवास से अपहरण की कोशिश का आरोप लगाया। फिर समीक्षा बैठक में कुलदीप को संरक्षक पद और बिश्नोई रत्न सम्मान दोनों वापस ले लिए गए।
आगे क्या?
अब बिश्नोई महासभा में प्रधान पद को लेकर दो तरफा दावेदारी है— एक ओर देवेंद्र बूड़िया, दूसरी ओर कुलदीप गुट के परसराम बिश्नोई। नई व्यवस्था के मुताबिक, अब हर प्रधान का चुनाव पारदर्शी होगा और संगठन में संरक्षक का पद खत्म किया जाएगा।













