सिरसा में शुक्रवार को कृषि विभाग द्वारा आयोजित प्राकृतिक खेती पर एक दिवसीय जिला स्तरीय कार्यशाला के दौरान एक किसान ने सरकार की नीतियों पर सवाल उठाते हुए एक महत्वपूर्ण सुझाव दिया। जमाल गांव निवासी किसान रविंद्र ने मांग की कि रासायनिक खाद पर दी जाने वाली सब्सिडी सीधे प्राकृतिक खेती अपनाने वाले किसानों के खाते में डाली जानी चाहिए, ताकि इस पद्धति को वास्तविक बढ़ावा मिल सके।
विवाद का केंद्र: खाद सब्सिडी बनाम प्राकृतिक खेती प्रोत्साहन
कार्यक्रम के दौरान जब कृषि विभाग के डॉ. सुभाष चंद्र प्राकृतिक खेती के लाभ बता रहे थे, तब किसान रविंद्र ने खड़े होकर कहा, “सरकार नहीं चाहती कि किसान प्राकृतिक खेती करे। सरकार यूरिया और डीएपी पर एक बैग पर 1500 रुपए सब्सिडी देती है।”उन्होंने तर्क दिया कि ‘मेरी फसल-मेरा ब्योरा’ पोर्टल के जरिए सालाना 6 क्विंटल यूरिया (लगभग 10,000 रुपए की सब्सिडी) का ऑनलाइन पंजीकरण करवाया जाता है। उनका सुझाव था कि यह सब्सिडी राशि सीधे उन किसानों के खाते में जाए जो प्राकृतिक खेती करते हैं, जिससे अधिक से अधिक किसान इस ओर आकर्षित होंगे।
अधिकारियों का जवाब: सरकारी योजनाओं का हवाला
इस पर डॉ. सुभाष ने जवाब दिया कि सरकार पहले से ही प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहित कर रही है। उन्होंने बताया कि प्राकृतिक खेती करने वाले किसानों को 4,000 रुपए की प्रोत्साहन राशि, मुफ्त प्रशिक्षण, निशुल्क प्रमाणीकरण और ब्रांडिंग के लिए 20,000 रुपएकी सहायता दी जाती है। उन्होंने किसानों से आह्वान किया कि वे “जहरमुक्त खेती” को बढ़ावा दें और पर्यावरण को साफ रखने में योगदान दें।
एडीसी वीरेंद्र सहरावत ने किसान से अनुरोध किया कि वे अपनी बात को “सुझाव के तौर” पर रखें।
प्रदर्शनी में दिखे प्राकृतिक उत्पाद
कार्यशाला में प्राकृतिक खेती से जुड़े विभिन्न जैविक उर्वरकों और उत्पादों की एक प्रदर्शनी भी लगाई गई थी। एक कंपनी के प्रतिनिधि मेघराज पंवार ने बताया कि प्राकृतिक उत्पादों से न सिर्फ भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ती है, बल्कि फसल में आने वाले तनाव और वृद्धि की समस्याओं का भी समाधान किया जा सकता है।
यह घटना प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने की दिशा में एक बड़ी चुनौती को उजागर करती है। किसान का तर्क है कि जब तक रासायनिक खाद पर दी जाने वाली भारी सब्सिडी (जो परोक्ष रूप से उसके इस्तेमाल को सस्ता बनाती है) का लाभ प्राकृतिक खेती अपनाने वाले किसानों को प्रत्यक्ष रूप से नहीं मिलेगा, तब तक बड़े पैमाने पर बदलाव मुश्किल है। कार्यशाला में किसानों को सम्मानित किया गया और उनके लिए ड्रा भी निकाले गए, लेकिन किसान रविंद्र द्वारा उठाया गया यह आर्थिक पक्ष सरकार के लिए एक गंभीर विचारणीय मुद्दा है।











