हरियाणा की राजनीति: हरियाणा, जिसे 1 नवंबर 1966 को पंजाब से अलग कर एक नए राज्य के रूप में बनाया गया, का राजनीतिक इतिहास बेहद उतार-चढ़ाव भरा रहा है। यहाँ की राजनीति की पहचान “आया राम, गया राम” की दल-बदल संस्कृति, तीन ‘लालों’ (देवी लाल, बंसी लाल, और भजन लाल) के प्रभुत्व और जाट समुदाय के गहरे प्रभाव से होती है। आइए, हरियाणा की राजनीति की परतों को बारीकी से समझते हैं।
हरियाणा बनने से पहले की राजनीति
हरियाणा के गठन की मांग भाषाई और सांस्कृतिक आधार पर की गई थी। उस समय, यह क्षेत्र पंजाब का हिस्सा था और यहाँ के नेता पंजाब की राजनीति में ही सक्रिय थे।
प्रमुख नेता और आंदोलन:
चौधरी देवी लाल: वे हरियाणा क्षेत्र के सबसे प्रमुख नेताओं में से एक थे और उन्होंने एक अलग राज्य की मांग को जोरदार तरीके से उठाया।
भगवत दयाल शर्मा: वे अविभाजित पंजाब सरकार में श्रम मंत्री थे और बाद में हरियाणा के पहले मुख्यमंत्री बने।
इन नेताओं ने महसूस किया कि पंजाब की राजनीति में पंजाबी भाषी क्षेत्रों का दबदबा है और हरियाणा क्षेत्र के विकास पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जा रहा है। इसी संघर्ष के परिणामस्वरूप, पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, 1966 के तहत हरियाणा का जन्म हुआ।
हरियाणा का राजनीतिक इतिहास (1966-वर्तमान)
हरियाणा की राजनीति को मोटे तौर पर चार मुख्य चरणों में बांटा जा सकता है।
1. अस्थिरता और “आया राम, गया राम” का दौर (1966-1968)
राज्य के गठन के तुरंत बाद, हरियाणा गंभीर राजनीतिक अस्थिरता का शिकार हो गया।
पहली सरकार: कांग्रेस के भगवत दयाल शर्मा पहले मुख्यमंत्री बने, लेकिन उनकी सरकार केवल 143 दिनों तक चली। दलबदल के कारण उन्हें इस्तीफा देना पड़ा।
“आया राम, गया राम” का जन्म: 1967 में, हसनपुर के एक निर्दलीय विधायक गया लाल ने एक ही दिन में तीन बार पार्टी बदली। इस घटना ने भारतीय राजनीति को “आया राम, गया राम” का मुहावरा दिया, जो राजनीतिक अवसरवादिता का प्रतीक बन गया।
राष्ट्रपति शासन: इस अभूतपूर्व दलबदल और अस्थिरता के कारण, राव बीरेन्द्र सिंह की सरकार गिरने के बाद, नवंबर 1967 में राज्य में पहली बार राष्ट्रपति शासन लगाया गया।
2. ‘लालों’ का युग: तीन राजवंशों का प्रभुत्व (1968-1999)
यह दौर हरियाणा की राजनीति में तीन शक्तिशाली नेताओं—बंसी लाल, देवी लाल और भजन लाल—के इर्द-गिर्द घूमता रहा। इन तीनों ने बारी-बारी से राज्य पर शासन किया और अपनी-अपनी राजनीतिक विरासतें स्थापित कीं।
बंसी लाल (कांग्रेस): “आधुनिक हरियाणा के निर्माता”
उन्होंने 1968 से 1975 तक लगातार शासन किया और राज्य के औद्योगिकीकरण और बुनियादी ढांचे के विकास पर ध्यान केंद्रित किया। आपातकाल (1975-77) के दौरान वे इंदिरा गांधी और संजय गांधी के करीबी सहयोगी थे।
बाद में उन्होंने हरियाणा विकास पार्टी (HVP) का गठन किया और 1996 में फिर से मुख्यमंत्री बने।
चौधरी देवी लाल (जनता पार्टी/जनता दल/INLD): “ताऊ” और किसानों के नेता
उन्होंने आपातकाल के बाद 1977 में जनता पार्टी की लहर पर जीत हासिल की और मुख्यमंत्री बने। वे ग्रामीण और कृषि हितों के सबसे बड़े पैरोकार माने जाते थे।
1989 में वे राष्ट्रीय राजनीति में चले गए और भारत के उप-प्रधानमंत्री बने, जबकि उनके बेटे ओम प्रकाश चौटाला ने हरियाणा की कमान संभाली।
भजन लाल (कांग्रेस): “राजनीतिक प्रबंधन के माहिर”
भजन लाल को राजनीतिक जोड़-तोड़ का उस्ताद माना जाता था। 1979 में, उन्होंने देवी लाल की जनता पार्टी सरकार को गिरा दिया और खुद मुख्यमंत्री बन गए।
1980 में, उन्होंने एक अभूतपूर्व कदम उठाते हुए अपनी जनता पार्टी सरकार के अधिकांश विधायकों के साथ कांग्रेस में विलय कर लिया और सत्ता में बने रहे।
यह पूरा दौर इन तीन ‘लालों’ और उनके परिवारों के बीच सत्ता संघर्ष का गवाह रहा।
3. गठबंधन और राजनीतिक अस्थिरता का दूसरा दौर (1989-1999)
देवी लाल के राष्ट्रीय राजनीति में जाने के बाद, हरियाणा ने एक बार फिर شدید अस्थिरता का दौर देखा।
चौटाला के छोटे कार्यकाल: 1989 से 1991 के बीच, ओम प्रकाश चौटाला ने चार बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, लेकिन उनके कार्यकाल बहुत छोटे रहे।
5 दिन की सरकार: 12 जुलाई से 17 जुलाई 1990 तक, चौटाला का कार्यकाल केवल पांच दिनों का था, जो हरियाणा के इतिहास में सबसे छोटा है।
तीसरा राष्ट्रपति शासन: इस राजनीतिक अराजकता के कारण, 6 अप्रैल 1991 को राज्य में तीसरी बार राष्ट्रपति शासन लगाया गया।
बंसी लाल की सरकार का पतन: 1996 में बंसी लाल की हरियाणा विकास पार्टी ने भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाई, लेकिन 1999 में भाजपा ने समर्थन वापस ले लिया, जिससे सरकार गिर गई। इसके बाद ओम प्रकाश चौटाला ने भाजपा के समर्थन से सरकार बनाई।
4. सापेक्ष स्थिरता और भाजपा का उदय (2005-वर्तमान)
2000 के दशक की शुरुआत में राजनीति कुछ हद तक स्थिर हुई।
भूपिंदर सिंह हुड्डा का दशक: 2005 से 2014 तक, कांग्रेस के भूपिंदर सिंह हुड्डा ने लगातार दो कार्यकाल पूरे किए, जिससे राज्य में एक दशक की स्थिर सरकार रही।
भाजपा का उदय: 2014 के विधानसभा चुनावों में, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने पहली बार अपने दम पर बहुमत हासिल किया और मनोहर लाल खट्टर राज्य के पहले भाजपा मुख्यमंत्री बने। यह हरियाणा की राजनीति में एक बड़ा मोड़ था, क्योंकि सत्ता दशकों से चले आ रहे राजनीतिक घरानों से बाहर निकल गई।
गठबंधन और हालिया उथल-पुथल: 2019 में, भाजपा बहुमत से चूक गई और उसने दुष्यंत चौटाला (देवी लाल के परपोते) की जननायक जनता पार्टी (JJP) के साथ गठबंधन सरकार बनाई।
मार्च 2024 में, लोकसभा चुनाव से ठीक पहले, यह गठबंधन टूट गया, और मनोहर लाल खट्टर की जगह नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बनाया गया। इसके तुरंत बाद, तीन निर्दलीय विधायकों ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया, जिससे सैनी सरकार अल्पमत में आ गई, और राज्य की राजनीति में एक बार फिर अनिश्चितता का माहौल बन गया।
हरियाणा में सरकारें कब और क्यों गिरीं?
| वर्ष | गिरी हुई सरकार | कारण | परिणाम |
|---|---|---|---|
| 1967 | भगवत दयाल शर्मा (कांग्रेस) | 13 विधायकों का दलबदल। | राव बीरेन्द्र सिंह की सरकार बनी, जो खुद भी दलबदल के कारण गिर गई, और अंततः राष्ट्रपति शासन लगा। |
| 1979 | देवी लाल (जनता पार्टी) | भजन लाल द्वारा दल-बदल कराकर सरकार गिराई गई। | भजन लाल मुख्यमंत्री बने और बाद में अपनी पूरी विधायक मंडली के साथ कांग्रेस में शामिल हो गए। |
| 1990 | ओम प्रकाश चौटाला (जनता दल) | जनता दल के भीतर आंतरिक कलह और नेतृत्व का संघर्ष। | बनारसी दास गुप्ता को सीएम बनाया गया, लेकिन कुछ ही समय बाद चौटाला वापस आ गए। |
| 1991 | हुकम सिंह (समाजवादी जनता पार्टी) | राजनीतिक अस्थिरता और विधानसभा भंग होना। | राज्य में तीसरी बार राष्ट्रपति शासन लगाया गया। |
| 1999 | बंसी लाल (HVP-BJP गठबंधन) | भाजपा द्वारा समर्थन वापस लेना। | ओम प्रकाश चौटाला ने भाजपा के समर्थन से INLD की सरकार बनाई। |
| 2024 | (गठबंधन टूटा) | BJP-JJP गठबंधन लोकसभा सीटों के बंटवारे पर टूटा। | मनोहर लाल खट्टर ने इस्तीफा दिया और नायब सिंह सैनी नए मुख्यमंत्री बने, लेकिन सरकार अल्पमत में आ गई। |
हरियाणा की राजनीतिक यात्रा दल-बदल, व्यक्तित्व-आधारित सत्ता संघर्ष, और पारिवारिक राजवंशों की कहानी है। “आया राम, गया राम” की संस्कृति से लेकर तीन ‘लालों’ के प्रभुत्व तक, और अब भाजपा के उदय के साथ एक नए राजनीतिक समीकरण तक, इस छोटे से राज्य ने हमेशा राष्ट्रीय राजनीति का ध्यान खींचा है। वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य, जहां गठबंधन टूट रहे हैं और सरकारें बहुमत के लिए संघर्ष कर रही हैं, यह दर्शाता है कि हरियाणा की राजनीति आज भी उतनी ही अप्रत्याशित और दिलचस्प है जितनी अपने शुरुआती दिनों में थी।












