हरियाणा में धान की फसल पर बौनेपन की बीमारी (काली धारीदार बौना विषाणु) का प्रकोप बढ़ रहा है। कृषि विभाग के अनुसार, प्रदेश में 40 लाख एकड़ में बोई गई धान की फसल में से करीब 92 हजार एकड़ प्रभावित हुई है। यह बीमारी मुख्य रूप से कैथल, अंबाला, यमुनानगर, कुरुक्षेत्र, करनाल, जींद और पंचकूला जिलों में फैल रही है।
किसानों को सरकार की सलाह
कृषि मंत्री श्याम सिंह राणा ने किसानों को सलाह दी है कि वे प्रभावित पौधों को उखाड़कर नष्ट करें ताकि बीमारी आगे न फैले। साथ ही अनुशंसित कीटनाशकों का छिड़काव करने के निर्देश दिए गए हैं।
विपक्ष का हमला और मुआवजे की मांग
कैथल से कांग्रेस विधायक आदित्य सुरजेवाला और इनेलो विधायक अर्जुन चौटाला व आदित्य देवीलाल ने विधानसभा में ध्यानाकर्षण प्रस्ताव के जरिए यह मुद्दा उठाया। सुरजेवाला ने कहा कि पीआर-114 और पीआर-1509 किस्मों पर बीमारी का खतरा ज्यादा है और इससे उपज में 80% तक की कमी हो सकती है। उन्होंने आरोप लगाया कि 2022 में भी बीमारी फैली थी, लेकिन सरकार ने न रिसर्च करवाई और न ही क्विक रेस्पॉन्स टीम बनाई। विपक्षी विधायकों ने प्रभावित किसानों को मुआवजा देने की मांग की।
कृषि मंत्री का जवाब
मंत्री ने बताया कि 2022 में कुछ मामले सामने आए थे, लेकिन समय पर कार्रवाई और जागरूकता अभियान से नुकसान कम हुआ। 2023 और 2024 में बीमारी का प्रकोप नहीं था, लेकिन इस साल यह फिर उभरा है।
वैज्ञानिक रिपोर्ट
चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार और ICAR की रिपोर्ट में सामने आया कि यह रोग सबसे ज्यादा हाइब्रिड धान की किस्मों में पाया गया।
इसके बाद परवल (गैर-बासमती) और फिर बासमती धान की किस्मों में भी लक्षण मिले।
ज्यादातर समस्या उन खेतों में दिखी जहां किसान 25 जून से पहले धान की रोपाई कर चुके थे।
अंबाला जिले में 6350 एकड़ धान इस वायरस से प्रभावित पाया गया।
राहत की बात यह रही कि जैविक खेती और डायरेक्ट सीडिंग (DSR) में इसका कोई असर नहीं हुआ।
किसानों को सुझाए गए उपाय
प्रभावित पौधों को उखाड़कर नष्ट करें।
अनुशंसित कीटनाशक का छिड़काव करें:
डाइनाइट्रोफ्यूरान 20% SG (ओशीन/टोकन) – 80 ग्राम/एकड़
पाइमेट्रोज़ीन 50% WG (चेस) – 120 ग्राम/एकड़
इमिडाक्लोप्रिड 17.8% SL – 40-50 मिली/एकड़, 200 लीटर पानी में मिलाकर।
जरूरत पड़ने पर दूसरा छिड़काव करें।
खेतों में जलस्तर कम रखें और यूरिया का संतुलित उपयोग करें।
खेतों में लाइट ट्रैप लगाएं।
मुआवजे पर स्थिति
सरकारी नियमों के अनुसार, किसानों को इनपुट सब्सिडी केवल तब दी जाती है जब फसल का 25% या उससे अधिक नुकसान हुआ हो। चूंकि अभी यह हानि 5% से 10% तक दर्ज की गई है, इसलिए फिलहाल किसानों को मुआवजा नहीं मिल पाएगा।












