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मोदी सरकार का जाति जनगणना का फैसला: मास्टर स्ट्रोक या विपक्ष के दबाव का नतीजा?

On: May 1, 2025 2:02 AM
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मोदी सरकार ने 30 अप्रैल 2025 को कैबिनेट की बैठक में फैसला लिया कि आगामी जनगणना में जाति आधारित गणना को शामिल किया जाएगा।

मोदी सरकार ने 30 अप्रैल 2025 को कैबिनेट की बैठक में फैसला लिया कि आगामी जनगणना में जाति आधारित गणना को शामिल किया जाएगा। यह फैसला ऐसे समय में आया है जब देश पहलगाम आतंकी हमले को लेकर जवाबी कार्रवाई की उम्मीद कर रहा था। उच्च स्तरीय बैठकों और गोदी मीडिया के जरिए यह माहौल बनाया जा रहा था कि सरकार कोई बड़ा फैसला लेने वाली है, शायद पाकिस्तान को जवाब देने के लिए। लेकिन फैसला आया जाति जनगणना का, जो मूल रूप से विपक्ष, खासकर कांग्रेस और राहुल गांधी का प्रमुख मुद्दा रहा है। यह स्थिति कई सवाल खड़े करती है: क्या यह फैसला विपक्ष के दबाव का नतीजा है? क्या सरकार पहलगाम हमले से ध्यान हटाना चाहती है? और क्या बीजेपी अब 50% आरक्षण की सीमा बढ़ाने का समर्थन करेगी?

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महाराष्ट्र चुनाव औरएक हैं तो सेफ हैंका नारा

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव (नवंबर 2024) में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने “एक हैं तो सेफ हैं” का नारा दिया था। बीजेपी समर्थकों और जानकारों ने इसे कांग्रेस के जाति जनगणना के मुद्दे के जवाब के रूप में देखा। दावा था कि कांग्रेस जाति जनगणना के जरिए ओबीसी और अन्य समुदायों को बांटना चाहती है, जबकि बीजेपी की यह रणनीति हिंदुत्व की एकता को मजबूत करने की थी। बीजेपी सांसदों, जैसे दिनेश शर्मा और अनुराग ठाकुर, ने राहुल गांधी पर निशाना साधते हुए कहा था कि जाति जनगणना की बात करने वाले सनातन धर्म की एकता को नहीं समझते। अनुराग ठाकुर ने तो राहुल गांधी की जाति पर ही सवाल उठा दिया था, जिसका जवाब राहुल ने संसद में दिया कि “मेरा अपमान कर सकते हैं, लेकिन जाति जनगणना होगी।”

विपक्ष का मुद्दा, बीजेपी का फैसला

जाति जनगणना का मुद्दा विपक्ष, खासकर राहुल गांधी, तेजस्वी यादव, और अखिलेश यादव का प्रमुख एजेंडा रहा है। राहुल गांधी ने इसे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाया। उन्होंने इसे “भारत का एक्स-रे” बताया, जो यह दिखाएगा कि देश में ओबीसी, दलित, आदिवासी और अन्य वर्गों की वास्तविक स्थिति क्या है। बिहार में नीतीश कुमार की सरकार के साथ गठबंधन में आरजेडी और कांग्रेस ने 2023 में जाति आधारित सर्वे कराया, जिसके बाद आरक्षण की सीमा 50% से बढ़ाकर 65% कर दी गई। कर्नाटक और तेलंगाना में भी कांग्रेस सरकारों ने जाति जनगणना कराई। तेलंगाना में नवंबर 2024 में शुरू हुई जनगणना में 50 दिनों में 3.5 करोड़ लोगों का सर्वे हुआ।

राहुल गांधी ने संसद में, विदेशी मंचों पर (जैसे ब्राउन यूनिवर्सिटी), और अपने यूट्यूब चैनल पर प्रोफेसर सुखदेव थोराट जैसे चिंतकों के साथ इस मुद्दे को गहराई से उठाया। उन्होंने कहा कि जाति जनगणना से यह सामने आएगा कि आर्थिक संसाधन, शिक्षा, और सिविक सुविधाओं पर किनका एकाधिकार है। यह डर ही जाति जनगणना के विरोध का कारण है।

बीजेपी का यूटर्न: पहले विरोध, अब समर्थन?

बीजेपी ने कभी स्पष्ट रूप से जाति जनगणना का विरोध नहीं किया, लेकिन पिछले 10 साल में इस दिशा में कोई ठोस कदम भी नहीं उठाया। 2011 में मनमोहन सिंह सरकार ने सामाजिक-आर्थिक सर्वे (SECC) कराया था, लेकिन इसके आंकड़े जारी नहीं किए गए। कांग्रेस के मलिकार्जुन खरगे ने 2014 से इन आंकड़ों को जारी करने की मांग की, लेकिन मोदी सरकार ने इसे अनसुना कर दिया। सितंबर 2021 में बीजेपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर कहा था कि जाति आधारित गणना प्रशासनिक रूप से संभव नहीं है।

2023 में अमित शाह ने कहा था कि बीजेपी इसका विरोधी नहीं है, लेकिन सोच-समझकर फैसला लिया जाएगा। सितंबर 2024 में उन्होंने जनगणना की घोषणा का इंतजार करने को कहा। और अब, अप्रैल 2025 में, जब देश पहलगाम हमले पर जवाब की उम्मीद कर रहा था, सरकार ने जाति जनगणना का फैसला लिया। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में दावा किया कि कांग्रेस ने हमेशा जाति जनगणना का विरोध किया, जो तथ्यात्मक रूप से गलत है। कांग्रेस ने न केवल बिहार, कर्नाटक, और तेलंगाना में जाति सर्वे कराए, बल्कि 2010 में मनमोहन सिंह ने लोकसभा में इसकी वकालत भी की थी।

पहलगाम हमले के बीच फैसला: ध्यान भटकाने की कोशिश?

पहलगाम हमले के बाद सरकार पर कड़ा जवाब देने का दबाव था। गोदी मीडिया और बीजेपी समर्थक इसे बड़ा मौका बता रहे थे। लेकिन सरकार ने जाति जनगणना का फैसला लिया, जो विपक्ष का मुद्दा है। यह सवाल उठता है कि क्या सरकार आतंकी हमले से ध्यान हटाकर देश को जाति जनगणना और आरक्षण की बहस में उलझाना चाहती है? आरक्षण की 50% सीमा को बढ़ाने की मांग भी इस मुद्दे से जुड़ी है, जिसे राहुल गांधी और अन्य विपक्षी नेता जोर-शोर से उठाते रहे हैं।

हिंदू बिजनेस लाइन की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2025 के बजट में जनगणना के लिए आवंटन 1500 करोड़ से घटाकर 570 करोड़ कर दिया गया। अगर सरकार 2025 में जनगणना कराने की योजना बना रही होती, तो बजट में इतनी कटौती क्यों? सरकार ने यह भी स्पष्ट नहीं किया कि जनगणना कब होगी। 2020 में होनी वाली जनगणना कोविड और अन्य कारणों से अब तक टल चुकी है।

बीजेपी समर्थकों और आरएसएस की प्रतिक्रिया

बीजेपी और आरएसएस का एक वर्ग लंबे समय से यह तर्क देता रहा है कि जाति जनगणना हिंदुत्व की एकता को तोड़ेगी। महाराष्ट्र चुनाव में “एक हैं तो सेफ हैं” का नारा इसी सोच का हिस्सा था। लेकिन अब बीजेपी का यह फैसला उनके अपने समर्थकों और आईटी सेल के लिए झटका हो सकता है। लालू प्रसाद यादव ने इसे “संघियों को अपने एजेंडे पर नचाने” की बात कहकर बीजेपी पर तंज कसा। नीतीश कुमार ने भी इस फैसले का स्वागत किया, लेकिन सवाल यह है कि क्या बीजेपी का कोर वोटर और समर्थक इसे “मास्टर स्ट्रोक” मानेगा या इसे विपक्ष के दबाव में लिया गया फैसला समझेगा?

क्या कहते हैं विपक्षी नेता?

  • लालू प्रसाद यादव: उन्होंने कहा कि 1996-97 में उनकी सरकार ने जाति जनगणना का फैसला लिया था, जिसे वाजपेई सरकार ने लागू नहीं किया। बिहार में उनकी सरकार ने पहला जातिगत सर्वे कराया। यह फैसला उनकी पुरानी मांग की जीत है।
  • राहुल गांधी: उन्होंने इसे सामाजिक और आर्थिक असमानता को उजागर करने का जरिया बताया। उनका कहना है कि यह फैसला उनकी गारंटी का नतीजा है, जिसे उन्होंने विपक्ष में रहकर भी लागू करवाया।
  • मनोज झा (आरजेडी): उन्होंने कहा कि यह पहली बार है जब विपक्ष सरकार को फैसले के लिए मजबूर कर रहा है।

सवाल जो बाकी हैं

  1. फैसले का समय: पहलगाम हमले के बीच यह फैसला क्यों? क्या सरकार जवाबी कार्रवाई के दबाव से बचना चाहती है?
  2. जनगणना की तारीख: सरकार ने अभी तक यह स्पष्ट नहीं किया कि जनगणना कब होगी। बिना तारीख के यह घोषणा कितनी विश्वसनीय है?
  3. आरक्षण की सीमा: क्या बीजेपी 50% आरक्षण की सीमा बढ़ाने का समर्थन करेगी, जैसा कि विपक्ष मांग रहा है?
  4. हिंदुत्व का एजेंडा: क्या यह फैसला बीजेपी और आरएसएस की हिंदुत्व की एकता वाली सोच को चुनौती देगा?
  5. समर्थकों की प्रतिक्रिया: क्या बीजेपी समर्थक इसे मास्टर स्ट्रोक कहेंगे या राहुल गांधी के एजेंडे के सामने झुकने की हार मानेंगे?

जाति जनगणना का फैसला अपने आप में ऐतिहासिक है और देश की सामाजिक-आर्थिक वास्तविकता को समझने का जरूरी कदम है। लेकिन इसका समय और संदर्भ कई सवाल खड़े करता है। यह विपक्ष, खासकर राहुल गांधी, तेजस्वी यादव, और अन्य नेताओं की लंबी लड़ाई का नतीजा लगता है। बीजेपी ने इसे अपना फैसला बताकर श्रेय लेने की कोशिश की है, लेकिन उसका पुराना रुख और समर्थकों की प्रतिक्रिया इसे जटिल बनाती है। क्या यह वाकई मोदी का मास्टर स्ट्रोक है, या विपक्ष के दबाव में लिया गया फैसला? यह सवाल देश की सियासत को लंबे समय तक गर्माएगा।

वैशाली वर्मा

वैशाली वर्मा पत्रकारिता क्षेत्र में पिछले 3 साल से सक्रिय है। इन्होंने आज तक, न्यूज़ 18 और जी न्यूज़ में बतौर कंटेंट एडिटर के रूप में काम किया है। अब मेरा हरियाणा में बतौर एडिटर कार्यरत है।

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