ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने रविवार, 4 मई 2025 को एक ऐसा बयान दिया, जिसने न सिर्फ़ राजनीतिक हलकों में, बल्कि धार्मिक और सामाजिक मंचों पर भी तूफ़ान खड़ा कर दिया। उन्होंने कांग्रेस नेता राहुल गांधी को हिंदू धर्म से बहिष्कृत करने की घोषणा की। कारण? राहुल गांधी का संसद में दिया गया एक बयान, जिसमें उन्होंने मनुस्मृति को बलात्कारियों को बचाने का फॉर्मूला बताया। शंकराचार्य का कहना है कि इस बयान ने सनातन धर्म के अनुयायियों की भावनाओं को ठेस पहुँचाई। लेकिन क्या ये सिर्फ़ धार्मिक आस्था का मसला है, या इसके पीछे छिपा है सियासत का गहरा खेल? आइए, इस विवाद की परतें खोलते हैं।
विवाद की जड़: राहुल गांधी का बयान
सब कुछ शुरू हुआ संसद में राहुल गांधी के एक बयान से। उन्होंने कहा, “बलात्कारी को बचाने का फॉर्मूला संविधान में नहीं, बल्कि आपकी किताब, यानी मनुस्मृति में लिखा है।” इस बयान ने सनातन धर्म के अनुयायियों में आक्रोश पैदा कर दिया। शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने इसे हिंदू धर्मग्रंथों का अपमान करार दिया। उनके मुताबिक, राहुल ने न सिर्फ़ मनुस्मृति को ग़लत तरीके से पेश किया, बल्कि पूरे सनातन धर्म को आहत किया।
शंकराचार्य ने राहुल को तीन महीने पहले एक नोटिस भेजकर पूछा था कि मनुस्मृति में वो कौन सी बात लिखी है, जिसके आधार पर उन्होंने ये बयान दिया। लेकिन राहुल ने न जवाब दिया, न ही माफी माँगी। यहीं से मामला गंभीर हो गया। शंकराचार्य ने ऐलान किया कि राहुल अब हिंदू धर्म का हिस्सा नहीं हैं। उन्होंने मंदिरों में राहुल का विरोध करने और पुजारियों से उनकी पूजा न कराने की अपील की।
शंकराचार्य का रुख: सिर्फ़ राहुल ही क्यों?
शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद कोई नया नाम नहीं हैं। वो अपनी बेबाक राय और सत्ता के खिलाफ़ तीखे बयानों के लिए जाने जाते हैं। हाल ही में उन्होंने पहलगाम आतंकी हमले के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर “चौकीदार” शब्द का ज़िक्र करते हुए सवाल उठाए। इसके अलावा, सिंधु नदी समझौते को सस्पेंड करने के सरकार के फ़ैसले पर भी उन्होंने तंज कसा, कहते हुए कि भारत में नदी का पानी मोड़ने की सुविधाएँ ही नहीं हैं।
यही नहीं, अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा (22 जनवरी 2024) में भी वो शामिल नहीं हुए। उनका कहना था कि मंदिर का निर्माण पूरा होने से पहले प्राण प्रतिष्ठा करना शास्त्रों के ख़िलाफ़ है। तो क्या शंकराचार्य सिर्फ़ सत्ता या विपक्ष के खिलाफ़ बोलते हैं? या फिर उनका मकसद सनातन धर्म की मर्यादा की रक्षा करना है?
बड़ा सवाल: क्या शंकराचार्य किसी को धर्म से निकाल सकते हैं?
सनातन धर्म में शंकराचार्य का स्थान सर्वोच्च माना जाता है। आदि शंकराचार्य ने चार मठ स्थापित किए थे – ज्योतिर्मठ, द्वारका, पुरी, और श्रंगेरी। इन मठों का उद्देश्य धर्म की रक्षा और प्रचार करना था। इसके लिए एक संविधान, महानुशासनम, भी बनाया गया। लेकिन इस संविधान में कहीं नहीं लिखा कि शंकराचार्य किसी को धर्म से बहिष्कृत कर सकता है।
फिर शंकराचार्य का ये ऐलान क्या है? कुछ जानकार इसे एक प्रतीकात्मक बयान मानते हैं, जिसका मकसद धार्मिक भावनाओं को उभारना और सुर्खियाँ बटोरना है। सनातन धर्म का कोई एक केंद्र नहीं है, और कोई एक व्यक्ति, चाहे वो शंकराचार्य ही क्यों न हो, ये तय नहीं कर सकता कि कौन हिंदू है और कौन नहीं।
सियासी कोण: बीजेपी को मिला हथियार
इस विवाद का सबसे ज़्यादा फ़ायदा बीजेपी को हो रहा है। बीजेपी पहले से ही राहुल गांधी को “हिंदू विरोधी” बताने में कोई कसर नहीं छोड़ रही। चाहे वो राहुल का भगवान राम को काल्पनिक पात्र बताने वाला बयान हो, या अब ये मनुस्मृति विवाद – हर बार बीजेपी को एक नया हथियार मिल जाता है। शंकराचार्य का बयान उनके लिए सोने पे सुहागा साबित हुआ।
दूसरी ओर, कांग्रेस का कहना है कि शंकराचार्य के बयान को ग़लत तरीके से पेश किया गया। उत्तराखंड कांग्रेस की प्रवक्ता डॉ. प्रतिमा सिंह ने कहा कि राहुल की स्पीच को तोड़-मरोड़कर शंकराचार्य के सामने पेश किया गया। लेकिन सवाल ये है: क्या राहुल वाकई मंदिरों में पूजा करने से रोके जाएँगे? बीजेपी शासित राज्यों में ऐसा हो सकता है, लेकिन कांग्रेस शासित राज्यों में शायद नहीं।
जनता की राय: एकमत नहीं अनुयायी
सनातन धर्म के अनुयायी भी इस मसले पर एकमत नहीं हैं। कुछ लोग शंकराचार्य के बयान का समर्थन कर रहे हैं, खासकर वो जो कांग्रेस और राहुल गांधी के खिलाफ़ हैं। लेकिन कई लोग इसे राजनीतिक बयान मानते हैं। कुछ का कहना है कि शंकराचार्य का ये कदम एक बैलेंस एक्ट है – सत्ताधारी दल को निशाना बनाने के बाद, अब विपक्ष को निशाना बनाकर अपनी निष्पक्षता दिखाने की कोशिश।
निष्कर्ष: धर्म और सत्ता का अंतहीन खेल
शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद का राहुल गांधी को हिंदू धर्म से बहिष्कृत करने का ऐलान न सिर्फ़ धार्मिक, बल्कि सियासी दृष्टिकोण से भी अहम है। लेकिन इसका असर कितना होगा, ये वक़्त बताएगा। एक बात साफ़ है: धर्म और सत्ता का ये खेल, जिसमें आस्था को हथियार बनाया जाता है, अभी ख़त्म नहीं हुआ है। राहुल गांधी इस बार निशाने पर हैं, लेकिन अगला नंबर किसका होगा? ये सवाल हर उस शख्स के ज़हन में है, जो इस देश की सियासत को समझना चाहता है।
आपकी राय क्या है? क्या शंकराचार्य का बयान सही है, या ये सिर्फ़ सियासी ड्रामा है? कमेंट में बताएँ।