हरियाणा के प्रसिद्ध त्यौहार राज्य की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत, धार्मिक परंपराओं और कृषि-आधारित अर्थव्यवस्था का जीवंत प्रतिबिंब हैं। ये त्यौहार न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक हैं, बल्कि सामाजिक एकता, पारिवारिक बंधन और सामुदायिक भावना को भी प्रदर्शित करते हैं। हरियाणा के त्यौहारों को विभिन्न मौसमों, ऋतुओं और पौराणिक महत्व के आधार पर मनाया जाता है। ये परंपराएँ पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होती आई हैं और आज भी राज्य की सांस्कृतिक पहचान का अभिन्न अंग हैं।
लोहड़ी – सर्दी के अंत का त्यौहार
लोहड़ी हरियाणा (विशेषकर पंजाबी समुदाय) का एक महत्वपूर्ण हार्वेस्ट त्यौहार है जो जनवरी की 13 तारीख को मकर संक्रांति से एक दिन पहले मनाया जाता है। यह त्यौहार सर्दी के अंत और नई फसल के स्वागत का प्रतीक है। लोहड़ी का शब्दिक अर्थ पवित्रता और जीवन की चिंगारी है।
लोहड़ी को मनाने की परंपरा बेहद समृद्ध है। इस दिन परिवार और पड़ोसी आग के चारों ओर जमा होते हैं और लकड़ी जलाते हैं। आग में मूंगफली, रेवड़ी, मीठे चावल, भुनी हुई मकई और पॉपकॉर्न डाले जाते हैं। परिवार के सदस्य आग के चारों ओर घूमते हैं, गीत गाते हैं और एक-दूसरे को बधाई देते हैं। लोहड़ी की सुबह को तिल और गुड़ के लड्डू बनाए जाते हैं, जिन्हें “तिल और गुड़” कहा जाता है। नई विवाहित दुल्हन और नवजात शिशु की पहली लोहड़ी विशेष महत्व रखती है।
यह त्यौहार निषेचन, जीवन और समृद्धि का जश्न मनाता है। हरियाणा में लोहड़ी को मनाने की परंपरा बहुत पुरानी है और यह सामाजिक एकता का प्रतीक है।
तीज – मानसून का त्यौहार
तीज हरियाणा का सबसे प्रसिद्ध त्यौहार है जो श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है, जो आमतौर पर जुलाई-अगस्त में पड़ता है। यह त्यौहार मानसून के मौसम की खुशी का प्रतीक है और विशेष रूप से महिलाओं द्वारा मनाया जाता है।
तीज एक परंपरागत और रंगीन पर्व है जो प्रकृति की सुंदरता और सांस्कृतिक परंपराओं का मिश्रण है। इस दिन महिलाएं पारंपरिक वस्त्र पहनती हैं, हाथों पर मेहँदी लगवाती हैं और झूलों पर झूलते हुए लोक गीत गाती हैं। झूलों को रंग-बिरंगे फूलों और पत्तियों से सजाया जाता है।
तीज का मुख्य आकर्षण झूले पर झूलना है, जिसे “झूलना” कहा जाता है। महिलाएं सीमांत नृत्य करती हैं, जो इस त्यौहार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह त्यौहार महिलाओं की शक्ति, उनकी भूमिका और परिवार में उनके महत्व का सम्मान करता है।
गणगौर – माता गौरी की पूजा
गणगौर हरियाणा का एक महत्वपूर्ण वसंत पर्व है जो चैत्र शुक्ल पक्ष की तृतीया को मार्च-अप्रैल में मनाया जाता है। गणगौर शब्द “गण” (शिव) और “गौर” (पार्वती) से मिलकर बना है और यह देवी गौरी की पूजा का पर्व है।
गणगौर का त्यौहार मुख्य रूप से महिलाओं द्वारा मनाया जाता है, विशेषकर अविवाहित लड़कियाँ एक अच्छे पति की कामना के लिए इस व्रत को रखती हैं और विवाहित महिलाएं अपने पति की दीर्घायु और सुख की कामना करती हैं। इस दिन शिव और पार्वती की भव्य मूर्तियाँ बनाई जाती हैं।
गणगौर मेले का आयोजन हरियाणा के विभिन्न स्थानों पर किया जाता है, जहाँ हजारों श्रद्धालु इकट्ठा होते हैं। मूर्तियों को भव्य जुलूस के साथ पानी में विसर्जित किया जाता है। इस समय महिलाएं परंपरागत गीत गाती हैं और नृत्य करती हैं। गणगौर का यह त्यौहार वास्तव में प्रकृति की बहार और महिला शक्ति का उदयापन है।
बैसाखी – फसल का पर्व
बैसाखी हरियाणा में अप्रैल की 13-14 तारीख को मनाया जाता है और यह नई फसल के आने का पर्व है। बैसाखी का पर्व किसानों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि इसी दिन से नई फसल का मौसम शुरू होता है।
इस दिन किसान नई फसल के लिए देवताओं को धन्यवाद देते हैं और भविष्य में समृद्धि की कामना करते हैं। हरियाणा में बैसाखी को भांगड़ा और गिद्धा नृत्य के साथ मनाया जाता है। परिवार और पड़ोस के लोग खीर, पूड़ी, दही और गुड़ से बने पारंपरिक भोजन का आनंद लेते हैं।
बैसाखी को “नए साल की शुरुआत” भी माना जाता है क्योंकि नई सौर ऋतु इसी दिन से शुरू होती है। यह त्यौहार समुदाय के बीच एकता और भाईचारे का संदेश देता है।
सूरजकुंड अंतर्राष्ट्रीय शिल्प मेला
सूरजकुंड अंतर्राष्ट्रीय शिल्प मेला हरियाणा का सबसे प्रसिद्ध और बड़ा मेला है जो फरीदाबाद के सूरजकुंड में प्रतिवर्ष 1-15 फरवरी को आयोजित किया जाता है। यह मेला तीन दशकों से लगातार आयोजित किया जा रहा है और विश्व के पर्यटन मानचित्र पर अपनी विशिष्ट पहचान बना चुका है।
सूरजकुंड मेला भारतीय संस्कृति, परंपराओं और हस्तशिल्प की विविधता का प्रदर्शन है। इस मेले में देश के विभिन्न राज्यों और विदेशों से हस्तशिल्पी और कारीगर आते हैं। मेले में हथकरघा, मिट्टी की गुड़िया, लकड़ी की वस्तुएं, वस्त्र, आभूषण और अन्य हस्तशिल्प प्रदर्शित किए जाते हैं।
सूरजकुंड मेले में हर साल किसी एक राज्य को “थीम राज्य” के रूप में चुना जाता है, जो अपनी कला, संस्कृति और परंपराओं को प्रदर्शित करता है। 2026 में मिस्र भागीदार राष्ट्र होगा, जबकि उत्तर प्रदेश और मेघालय थीम राज्य होंगे। मेले में 1000 से अधिक स्टाल लगाए जाएंगे।
मेले का एक महत्वपूर्ण आकर्षण विभिन्न राज्यों के लोक नृत्य और संगीत की प्रस्तुति है। शाम के समय विशेष सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं, जहाँ दर्शक भगोरिया नृत्य, बीन नृत्य, भांगड़ा, गिद्धा और अन्य पारंपरिक नृत्यों का आनंद लेते हैं।
गुग्गा नवमी
गुग्गा नवमी हरियाणा का एक अनोखा और समृद्ध त्यौहार है जो भाद्र मास की कृष्ण पक्ष की नवमी को अगस्त-सितंबर में मनाया जाता है। यह त्यौहार सांप के देवता गुग्गा पीर की पूजा के लिए मनाया जाता है।
गुग्गा पीर को एक लोक देवता माना जाता है जिन्हें सांप के काटने से रक्षा करने वाला माना जाता है। इस दिन भक्तों द्वारा गुग्गा पीर की मूर्ति को जुलूस के साथ गली में घुमाया जाता है। पारंपरिक वेशभूषा में लोग नृत्य करते हैं और गीत गाते हैं।
गुग्गा नवमी को “गुग्गा पीर का मेला” भी कहा जाता है और यह त्यौहार हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों द्वारा समान उत्साह से मनाया जाता है। यह हरियाणा की सांस्कृतिक एकता का एक सुंदर उदाहरण है।
गीता जयंती – अंतर्राष्ट्रीय महोत्सव
गीता जयंती हरियाणा का एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक और सांस्कृतिक पर्व है जो मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को नवंबर-दिसंबर में मनाया जाता है। यह पर्व श्रीमद् भगवद गीता के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है।
कुरुक्षेत्र में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय गीता जयंती महोत्सव एक भव्य आयोजन है। 2025 में इस महोत्सव में 51 देशों में गीता जयंती मनाई जा रही है। महोत्सव में ब्रह्मसरोवर और सन्निहित सरोवर में पवित्र स्नान, यज्ञ, वैदिक पाठ और सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है।
महोत्सव के मुख्य कार्यक्रमों में देश के जाने-माने कलाकारों की प्रस्तुति, विभिन्न सांस्कृतिक मंडलियों के नृत्य और संगीत, और आध्यात्मिक प्रवचन शामिल होते हैं। 2025 के गीता जयंती महोत्सव में 21,000 से अधिक विद्यार्थी एक साथ विश्वव्यापी गीता पाठ करते हैं।
अन्य महत्वपूर्ण त्यौहार
कार्तिक मेला कार्तिक मास में नवंबर-दिसंबर में आयोजित किया जाता है, जहाँ हजारों श्रद्धालु पवित्र तीर्थों पर आते हैं। गंगोर मेलासिरसा और रेवाड़ी जैसे स्थानों पर आयोजित किया जाता है।
पिंजौर हेरिटेज फेस्टिवल दिसंबर में पिंजौर गार्डन में आयोजित किया जाता है। इसमें कवि, गायक और नर्तकी अपनी कला प्रदर्शित करते हैं।
हरियाणा के त्यौहार राज्य की सांस्कृतिक समृद्धि, धार्मिक आस्था और सामाजिक समरसता का प्रतीक हैं। लोहड़ी से लेकर तीज, गणगौर से बैसाखी, गीता जयंती से सूरजकुंड मेला तक – ये सभी पर्व हरियाणा की पहचान हैं। इन त्यौहारों को मनाने की परंपरा सदियों पुरानी है और आज भी ये पर्व हरियाणा के लोगों के जीवन में आनंद, एकता और सांस्कृतिक गौरव का संचार करते हैं। ये त्यौहार न केवल धार्मिक महत्व रखते हैं, बल्कि सामाजिक सरोकार, पर्यावरण संरक्षण और मानवीय मूल्यों को भी प्रतिफलित करते हैं।

















